Sidhi News: सीधी में विकसित कृषि संकल्प अभियान में किसानों को प्राकृतिक खेती की दी गई सलाह
किसानों की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है प्राकृतिक खेती

सीधी। जिले में विकसित कृषि संकल्प अभियान के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र सीधी एवं कृषि अधिकारियों द्वारा किसानों को प्राकृतिक खेती करने की सलाह दी गई। प्राकृतिक खेती पर्यावरण संरक्षण, मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता और किसानों की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।
यह रासायनिक आदानों पर निर्भरता को समाप्त कर लागत को कम करती है, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करती है और सुरक्षित पौष्टिक खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करती है। साथ ही यह जैव विविधता को संरक्षित कर ग्रामीण समुदायों को आत्मनिर्भर बनाती है।
आयोजित हुई संगोष्ठी
विकसित कृषि संकल्प अभियान में आठवें दिन पहले दल द्वारा रामपुर नैकिन विकासखंड में गोपालपुर, ममदर, अमरपुर, दूसरे दल द्वारा सिहावल विकासखंड में कुबरी, तेन्दुहा नं1, पोखड़ौर एवं तीसरे दल द्वारा कुसमी विकासखंड में भुईमाड़, केशलार तथा सोनगढ़ में कृषक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कृषक संगोष्ठी में कृषि वैज्ञानिकों तथा कृषि अधिकारियों द्वारा जिले के किसानों को प्राकृतिक कृषि के लाभ के विषय मे जागरूक किया गया। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती को जीरो बजट खेती भी कहते हैं।
यह एक ऐसी कृषि पद्धति है जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को पूरी तरह से त्याग देती है और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर टिकाऊ खेती पर जोर देती है। इसके प्रमुख घटक और उनके महत्व निम्नानुसार हैं-
जीवामृत- यह गाय के गोबर, मूत्र, गुड़, बेसन और मिट्टी से बना एक प्राकृतिक उर्वरक है। जीवामृत मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाता है जो पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपलब्ध कराते हैं। यह मिट्टी की उर्वरता को प्राकृतिक रूप से बढ़ाता है और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को समाप्त करता है।
बीजामृत- यह गाय के गोबर, मूत्र, चूना और मिट्टी से तैयार एक बीज उपचार विधि है। बीजामृत बीजों को रोगों और कीटों से बचाता है, अंकुरण दर को बढ़ाता है और पौधों की प्रारंभिक वृद्धि को मजबूत करता है। यह रासायनिक बीज उपचार का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है।
आच्छादन (मल्चिंग)- मिट्टी को जैविक सामग्री जैसे पुआल, सूखी पत्तियों या घास से ढकना आच्छादन कहलाता है। यह मिट्टी की नमी को बनाए रखता है, खरपतवार को नियंत्रित करता है, मिट्टी के तापमान को संतुलित करता है और मिट्टी के कटाव को रोकता है। यह जल संरक्षण और मिट्टी स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।
वाफ्सा (मिट्टी में वायु संचार)- प्राकृतिक खेती में मिट्टी को गहराई तक जोतने के बजाय हल्की जुताई की जाती है ताकि मिट्टी के सूक्ष्मजीव और संरचना बरकरार रहे। यह मिट्टी में हवा और ऑक्सीजन की उपलब्धता को बढ़ाता है जो पौधों की जड़ों और सूक्ष्मजीवों के लिए लाभकारी है।
फसल विविधता और सह-फसलीकरण- प्राकृतिक खेती में एक साथ कई फसलों को उगाया जाता है जैसे कि मुख्य फसल के साथ सहायक फसलों का संयोजन। यह मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है, कीटों और रोगों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करता है और जैव विविधता को बढ़ावा देता है।
प्राकृतिक कीट नियंत्रण- नीम, धतूरा या अन्य औषधीय पौधों से बने काढ़े (जैसे निमास्त्र) का उपयोग कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह लाभकारी कीटों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कीट प्रबंधन सुनिश्चित करता है।