Rewa News: रीवा के जीएमएच में खुलेगा आईव्हीएफ ट्रीटमेंट सेंटर, सरकार को भेजा गया प्रस्ताव

नि:संतान दंपत्तियों को मिल सकेगा लाभ, हर माह आते हैं 15 से 20 केस 

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GMH

रीवा। हर दंपति का सपना होता है कि उनके घर में भी किलकारी गूंजे, लेकिन कई बार चाह पूरी नहीं हो पाती। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईव्हीएफ) ट्रीटमेंट के माध्यम से इस चाहत को पूरा किया जा सकता है। श्यामशाह चिकित्सा महाविद्यालय के स्त्री रोग विभाग में हर माह पंद्रह से बीस ऐसे दंपति पहुंचते हैं, जिन्हें संतान सुख के लिए आईव्हीएफ ट्रीटमेंट की आवश्यकता महसूस की जाती है। लेकिन यहां यह सुविधा अभी न होने की वजह से लोगों को बाहर जाना पड़ता है। हालांकि आईव्हीएफ ट्रीटमेंट के लिए यहां से सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। उम्मीद है कि जल्द ही इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल जाएगी और मेडिकल कॉलेज रीवा में भी आईव्हीएफ सेंटर शुरु हो जाएगा।

हर माह पंद्रह से बीस केर इसलिए होती हैं जरुरत ऐसा
अनियमित जीवनशैली और खानपान में लापरवाही के कारण कई लोगों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। वहीं शादी में देरी और शुक्राणुओं की कमीं व कुछ अन्य कारणों से भी कई बार संतान सुख में समस्या आती है। इलाज कराने के बावजूद कई दंपति निराश हो जाते हैं। ऐसे में लोगों के जीवन में आईव्हीएफ ट्रीटमेंट नई उम्मीदें लेकर आता है। 

ऐसा है इसका इतिहास
10 नवंबर 1977 को इंग्लैंड में लेस्ली ब्राउन नामक महिला ने डॉक्टर पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवइस की मदद से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रक्रिया शुरू की थी। जिसके बाद 25 जुलाई 1978 को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन का जन्म हुआ था। इसी के चलते हर साल 25 जुलाई को विश्व आईवीरफ दिवस मनाया जाता है।

प्रजनन चिकित्सा जगत की क्रांति
आईवीएफ को प्रजनन चिकित्सा जगत की एक क्रांति माना जाता है, लेकिन इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल तथा भ्रांतियां भी हैं। आमजन में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ इसके बारें में व्याप्त भ्रमों से जुड़े सही तथ्यों के बारें में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है।

ऐसे होती है प्रक्रिया
एक्सपर्ट बताते हैं कि इस प्रक्रिया को शरीर के बाहर एक प्रयोगशाला में किया जाता है। प्रयोगशाला में अंडों और शुक्राणु को मिलाया जाता है, जिससे बच्चे के जन्म की शुरुआत होती है।