MP News: मदरसों को मान्यता देने के नियम बनाने को लेकर असमंजस में डॉ. मोहन यादव सरकार

पिछले साल तैयार किए गए मसौदे को स्कूल शिक्षा विभाग ने ठंडे बस्ते में डाला, 26 सालों से अटकी प्रक्रिया

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भोपाल। यह प्रदेश के मदरसों के संचालन के चंद उदाहरण हैं। मदरसों में ढेरों फर्जीवाड़े सामने आने के बाद भी 26 सालों से मान्यता के नियम नहीं बने हैं। पिछले साल स्कूल शिक्षा विभाग ने मान्यता के नियमों का प्रस्ताव तैयार किया, लेकिन वह सरकारी फाइलों में उलझकर रह गया। 


दरअसल पिछले साल केंद्र सरकार ने जब वक्फ बोर्ड पर सख्ती की तो राज्य सरकार ने भी मदरसों पर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू की थी। मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड अधिनियम 1998 के संदर्भ में पच्चीस साल बाद साल 2023 में मदरसा पंजीयन एवं मान्यता के लिए नियम 2023 बनाने की तैयारी थी, उसके लिए मसौदा भी तैयार किया गया था, लेकिन विभागीय मंत्री और अधिकारियों के रुचि नहीं लेने के कारण तैयार किए गए प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।


26 साल पहले बना मदरसा बोर्ड
प्रदेश में शैक्षिक ग्रुप से पिछड़े अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम वर्ग) के बालक-बालिकाओं के शैक्षणिक विकास और उन्हें आधुनिक शिक्षा की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से 1998 में मप्र विधानसभा में मप्र मदरसा बोर्ड अधिनियम 1998 पारित किया गया था। 


इसका मुख्य कार्य दीनी तालीम (अरबी और इस्लामी अध्ययन का शिक्षण) दे रहे मदरसों के छात्र-छात्राओं को दीनी तालीम के साथ-साथ राज्य शासन के स्वीकृत कक्षा एक से आठवीं तक के पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाकर उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ना है। मध्य प्रदेश में मदरसा अधिनियम बनने के बाद से अभी तक उनकी मान्यता के नियम नहीं बने हैं। इस कारण मदरसों में मनमर्जी से काम हो रहा है।


दो तरह से मिलेगी मान्यता
मान्यता को लेकर नए नियम सरकार लागू करती है, तो मदरसा बोर्ड में दो प्रकार से मदरसों का पंजीयन कर मान्यता दी जाएगी। पहली सामान्य मदरसा व दूसरी आवासीय मदरसा की मान्यता रहेगी। सामान्य मदरसों में अल्पसंख्यक (मुस्लिम) बहुल क्षेत्र जहां अन्य कोई और मदरसा 500 मीटर के दायरे में स्थापित नहीं होना चाहिए। 


प्रस्तावित मदरसा भवन निजी वक्फ सम्पत्ति पर अथवा किराये का हो सकता है। निजी वक्फ सम्पत्ति पर स्थापित भवन की स्थिति में मदरसा जिस भवन में स्थापित होगा, वह भूमि-भवन संस्था/प्रबंध समिति का स्वयं का होना चाहिए।


किराये के भवन में मदरसा स्थापित करने के लिए मदरसा प्रबंध समिति द्वारा उस भवन भूमि को किराया नियम अथवा लीज नियमों के तहत न्यूनतम 3 वर्ष के लिए किराये पर लिये जाने का पंजीकृत अनुबंध कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत पूर्ण करना होगा। 


बहुसंख्यक वर्ग के बालक-बालिका मदरसे में पढ़ने के लिए प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन इसके लिए उनके अभिभावकों की सहमति अनिवार्य होगी। आवासीय मदरसों में छात्रों को दीनी तालीम के साथ आधुनिक शिक्षा (स्कूली शिक्षा) अनिवार्यत: प्रदान करना होगी। 


चंदे के रूप में प्राप्त राशि का वित्तीय वर्ष के अनुसार लेखा-जोखा संधारित करना होगा। मदरसे के पास उसकी निजी भूमि या भवन होना आवश्यक है। छात्रावास में वॉर्डन की नियुक्ति करनी होगी। आवासीय मदरसों में 15 वर्ष से अधिक होने की स्थिति में ऐसे विद्यार्थियों को आधुनिक शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए मदरसा बोर्ड एवं मप्र राज्य ओपन बोर्ड के संयुक्त तत्वाधान में दूरस्थ शिक्षा पद्धति के माध्यम से आयोजित कक्षा 10वीं एवं 12वीं की परीक्षाओं में शामिल किया जाएगा।


दीनी तालीम के साथ मिलेगी स्कूली शिक्षा
मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड अधिनियम 1998 के संदर्भ में पच्चीस साल बाद मदरसा पंजीयन एवं मान्यता को लेकर नियम-2023 का मसौदा तैयार किया गया था। तैयार किए गए नवीन मान्यता नियमों में मदरसों में अब दीनी तालीम के साथ स्कूली पाठ्यक्रम (पहली से आठवीं तक) की आधुनिक शिक्षा दी जाएगी। मदरसों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य रहेगी।


असेम्बली में प्रतिदिन छात्र-छात्राओं को सुबह राष्ट्रगान (जन गण मन) एवं छु्ट्टी के समय कौमी तराना सारे जहां से अच्छा का गान किया जाएगा। इतना ही नहीं, नवीन मदरसों का नामकरण भी मान्यता नियमों के अनुसार करना होगा। पहले आधुनिक मदरसा लिखना होगा। इसके बाद  मदरसे का नाम रखा जाएगा। मदरसे के नाम के साथ स्कूल या शाला जैसा शब्द नहीं जोड़ा जाएगा लेकिन, नियमों का ड्राफ्ट सरकारी फाइलों में उलझकर रह गया है।


इनका कहना है-
मदरसों की मान्यता के नियम के संबंध में मुझे कोई जानकारी नहीं है। बाद में जानकरी लेकर बता पाऊंगा।
-डीबी प्रसाद, अपर संचालक राज्य शिक्षा केंद्र व सचिव मप्र मदरसा बोर्ड