MP News: एमपी की 32 प्राइवेट यूनिवर्सिटी में कुलपतियों की नियुक्ति अमान्य, आयोग के सभापति निर्णय से लाखों छात्रों का भविष्य अधर मेें

सदस्यों ने ही मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय आयोग के फैसले को बताया नियम के विपरीत

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भोपाल। मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय आयोग की ओर से राज्य के 32 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को अमान्य किए जाने के फैसले को लेकर अब रार शुरू हो गई है। आयोग के निर्णय के खिलाफ विश्वविद्यालय अब आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं। आयोग और विश्वविद्यालयों की इस लड़ाई का सीधा नुकसान निजी विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने वाले लाखों छात्रों को उठाना पड़ रहा है। ऐसे में छात्रों का भविष्य भी अधर में लटक गया है।


मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय आयोग की ओर से राज्य के निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता दी जाती है। पिछले महीने आयोग के सभापति प्रो. भरतशरण सिंह ने आयोग की सभा की बैठक में प्रस्ताव लाए बिना स्वयं के हस्ताक्षर से मध्यप्रदेश के 32 निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया था।


उन्होंने सभी निजी विश्वविद्यालयों से कुलपतियों को पद से हटाने का आदेश दिया था। आयोग की सभा की बैठक में प्रस्ताव नहीं रखे जाने को लेकर खुद आयोग के सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई थी। सदस्यों ने इसे आयोग के अधिनियम के विपरीत बताया था। निजी विश्वविद्यालयों की ओर से आयोग के सभापति के इस निर्णय का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री से मामले की शिकायत की है।


 उनका कहना था कि आयोग के सभापति भरत शरण सिंह द्वारा यह निर्णय लिया गया है, इसे आयोग का निर्णय नहीं मान सकते हैं, क्योंकि इसमें आयोग के सदस्यों की राय भी नहीं ली गई है। इसे आयोग की बैठक में भी नहीं रखा गया था।


बताते हैं कि निजी विश्वविद्यालयों को इस बात पर आपत्ति थी कि जिस कमेटी की अनुशंसा पर यह निर्णय लिया गया था, उसे आयोग की ओर से नहीं, बल्कि खुद सभापति ने अपनी मर्जी से गठित कर लिया था। उसमें जो सदस्य शामिल किए गए थे, वे कुलपति स्तर के अधिकारियों से जूनियर थे और उन्हें सीनियर की जांच करने का अधिकार नहीं था।


 उसमें से एक रिटायर प्रोफेसर खुद एक निजी विश्वविद्यालय के कुलपति के अधीन काम कर रहे थे। एक सदस्य खुद निजी विश्वविद्यालय में कुलपति के पद के उम्मीदवार थे।  यह आपत्ति की गई है कि कुलपतियों को हटाने के लिए आयोग के जिन प्रावधानों का उल्लेख किया गया है, वे निजी विश्वविद्यालय के कर्मचारियों पर लागू होती हैं, कुलपतियों पर नहीं।


निजी विवि अब अदालत जाने की तैयारी में
आयोग के इस आदेश के खिलाफ निजी विश्वविद्यालय अब अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि आयोग के सभापति प्रतिनियुति पर पदस्थ थे। वहां से शासन को अवगत कराएं बिना पुन: प्रतिनियुक्ति से आयोग में प्रतिनियक्ति पर पदस्थ हो गए हैं। लिहाजा उनकी नियुक्ति भी अवैध है और लिहाजा उनका आदेश अदालत में चुनौती योग्य हैं। बताते हैं कि विश्वविद्यालयों की ओर से की गई शिकायत के बाद शासन स्तर पर इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है।


अमान्य कुलपतियों ने जिन पर साइन किए, उनका क्या होगा
मध्यप्रदेश के जिन कुलपतियों की नियुक्ति अमान्य की गई है, उनकी नियक्ति पहले तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा गठित आयोग की समिति की ओर से की गई थी। समिति में शासन के प्रतिनिधि के रूप में ख्यातनाम शिक्षाविदों को शामिल किया गया था। इसलिए उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाना उचित नहीं है।


 खास बात यह कि अमान्य किए गए कुलपतियों ने जिन उपाधियों, अंकसूचियों, अध्यादेशों और अन्य दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे, उनका क्या होगा। क्योंकि नियुक्ति की तिथि से कुलपतियों की नियक्ति को अमान्य किया गया है। इससे मध्यप्रदेश के लाखों छात्रों की डिग्रियां और उपाधियां मान्य नहीं होंगी, क्योंकि वे गलत मानी जाएंगी। इसका असर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग की छवि पर भी पड़ेगा।