विधानसभा चुनाव 2023: किसी की प्रतिष्ठा तो किसी का राजनैतिक करियर दांव पर, देखिए आठों सीटों का हाल

सिरमौर राजपरिवार तो त्योंथर तिवारी परिवार के वर्चस्व का करेगा निर्णय

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गुड मॉर्निंग, रीवा। विधानसभा चुनाव 2023 के लिए मतदान के प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है। अब सभी को परिणाम का इंतजार है। लेकिन इस चुनाव में रीवा की सभी सीटों में कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कई सीटों में बागी उम्मीदवार पार्टियों का समीकरण बिगाड़ते भी दिख रहे हैं।  न सबके बीच एक स्पष्ट है कि  यह विधानसभा चुनाव में कई प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा दांव में लगी है, जबकि कई उम्मीदवारों का राजनैतिक कैरियर। 
विधानसभावार समझते हैं कि कहां, क्या स्थिति है-

मतदान के बाद से कांग्रेसी उत्साहित, भाजपाई निश्चिंत 
रीवा विधानसभा- शहरी विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच माना जा रहा है। मप्र के जनसंपर्क मंत्री और चार बार के विधायक बीजेपी प्रत्याशी राजेंद्र शुक्ल के सामने कांग्रेस की तरफ से सफल कारोबारी इंजीनियर राजेंद्र शर्मा हैं। दोनों के बीच इस बार कड़ी टक्कर बताई जा रही है। जहां मंत्री राजेंद्र शुक्ल की प्रतिष्ठा दांव पर है।  वहीं राजेंद्र शर्मा का राजनैतिक भविष्य... खास बात यह है कि बीजेपी के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली रीवा सीट पर मतदान के बाद से कांग्रेस भी अपना दावा करने लगी है। अब राजनैतिक दलों के साथ आम लोगों को भी चुनाव परिणाम का बेसब्री से इंतजार है।
अगर यह चुनाव राजेंद्र शुक्ल जीतने में सफल होते हैं तो प्रदेश के कद्दावर नेताओं में सूची में उनका नाम बरकरार रहने वाला है, और इंजी.राजेंद्र शर्मा के आगामी राजनैतिक कैरियर नेपत्थ की ओर रूख करेगा। लेकिन कांग्रेस के दावे के अनुसार अगर यह सीट राजेंद्र शर्मा जीत लेते ैंहैं तो विंध्य में कांग्रेस और उनकी यह बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। जिसके बाद उनका राजनैतिक भविष्य भी स्वर्णिम रहने के आसार हैं। वहीं दुसरी ओर राजेंद्र शुक्ल की हार बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित होगी। 

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तीनों प्रत्याशियों का राजनैतिक भविष्य दांव पर 
सेमरिया विधानसभा- जिले की हॉट सीट मानी जाने वाली सेमरिया सीट में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है। कांग्रेस, भाजपा के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी पूरी ताकत के साथ मैदान में बनी हुई है। इस सीट का परिणाम पर तीनों ही प्रत्याशियों का राजनैतिक भविष्य का सवाल निर्भर करेगा। कांग्रेस प्रत्याशी अभय मिश्र पिछला यानी २०१८ का चुनाव रीवा विधानसभा से हार चुके हैं। जिसके बाद पांच सालों तक लगभग वह साइलेंट मोड पर रहे। चुनाव के कुछ महीने पहले दो बार पार्टी भी बदली ऐसे में इस चुनाव का रिजल्ट उनके कैरियर के लिए बड़ा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 
वहीं भाजपा प्रत्याशी व मौजूदा विधायक केपी त्रिपाठी पहली बार २०१८ में विधानसभा का चुनाव लड़ा था। और जीत हासिल की। चुनाव के पहले टिकट पर भी काफी असमंजस की स्थिति बनी। आखिरकार शीर्ष नेतृत्व ने युवा चेहरे केपी त्रिपाठी पर ही भरोसा जताया। जिसके पीछे मंत्री राजेंद्र शुक्ल की पैरवी भी अहम रही। अब चुनाव का परिणाम उनके आगे के भविष्य निर्भर करेगा। वहीं इस चुनाव में पंकज सिंह क्षेत्र में मजबूत दावेदार बनकर सामने उभरे हैं। 

युवा नरेंद्र के हिस्से हर हाल में लाभ 
मनगवां विधानसभा- जिले की एक मात्र आरक्षित सीट मनगवां में इस बार का मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच है। कांग्रेस प्रत्याशी बबिता साकेत दूसरी बार इस सीट से चुनाव लड़ रही हैं। वहीं उनके सामने भाजपा की ओर से नरेंद्र प्रजापति हैं जिन्हें वरिष्ठ विधायक पंचूलाल प्रजापति की टिकट काट कर मैदान में उतारा गया है। युवा नरेंद्र प्रजापति अगर विधायक चुने जाते हैं तो उनके राजनैतिक भविष्य का यह टर्निंग पाइंट माना जाएगा। वहीं बबिता साकेत बैकफुट पर चली जाएंगी। लेकिन अगर बबिता चुनाव जीतती हैं तो विधायक बनने के साथ साथ वह आगे के लिए भी कांग्रेस का चेहरा बन सकेंगी। वहीं हारने की स्थिति में भी नरेंद्र प्रजापति नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर लेंगे।


राजघराने की प्रतिष्ठा का सवाल बना सिरमौर 
सिरमौर विधानसभा- सिरमौर विधानसभा क्षेत्र में रीवा राजघराने के युवराज व दो बार से भाजपा के विधायक दिव्यराज सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिनके सामने कांग्रेस की ओर से पूर्व विधायक रामगरीब कोल हैं जबकि बसपा प्रत्याशी के रूप में वीडी पाण्डेय। यह चुनाव सिरमौर में राजा और रंक के बीच कहा जा रहा है। वहीं बसपा के वीडी पाण्डेय मजबूत नेता के तौर पर सामने आए हैं। कुल मिलाकर यहां से चुनाव का सबसे ज्यादा असर बीजेपी विधायक दिव्यराज सिंह की प्रतिष्ठा पर पड़ने वाला है। जीतने की स्थिति में वह अपने परिवार के वर्चस्व को एक बार फिर साबित कर पाएंगे। व तीसरी बार चुनवा जीत कर सरकार बनने की स्थिति में मंत्री पद के दावेदार भी हो सकते हैं जबकि हारने पर एक झटके में सारे सपने टूट जाएंगे। और राजपरिवार का रीवा की राजनीति में मौजूदगी भी फिलहाल के लिए समाप्त हो जाएगी। 

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जीत दोनों के लिए महत्वपूर्ण 
गुढ़ विधानसभा- 80 की उम्र पार कर चुके बीजेपी के वरिष्ठ विधायक नागेंद्र सिंह करीब करीब अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं। जिनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी कपिध्वज सिंह से है। इस बार का चुनाव परिणाम नागेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा व कपिध्वज सिंह की प्रतिष्ठा व राजनैतिक भविष्य दोनों पर प्रभाव डालेगा। नागेंद्र सिंह लगभग अपना आखिरी चुनाव जीतकर अपने राजनैतिक करियर से विराम चाहेंगे। वहीं पिछला दो चुनाव नागेंद्र सिंह के खिलाफ लड़ने वाले कपिध्वज सिंह यह चुनाव हर हाल में अपने राजनैतिक विरोधी नागेंद्र सिंह को हराकर अपनी हार का बदला लेना चाहेंगे। अब देखना है कि जनता ने किसके हिस्से जीत लिखी है। जो आगामी ३ दिसंबर को सबके सामने आने वाला है।

माननीय की साख दांव पर  
देवतालाब विधानसभा- जिले की चर्चित सीट देवतालाब विधानसभा क्षेत्र में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम की प्रतिष्ठा दांव में लगी है। बीजेपी उम्मीदवार श्री गौतम के विपक्ष में उनके ही भतीजे पद्मेश गौतम कांग्रेस से प्रत्याशी हैं। वहीं बसपा से अमरनाथ पटेल व सपा से कांग्रेस के बागी सीमा जयवीर सिंह चुनावी मैदान में हैं। प्रदेश भर की नजरें इस सीट पर लगी हुई हैं। कुछ लोग यहां कांग्रेस-भाजपा-बसपा त्रिकोणीय मुकाबला देखते हैं। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यहां काका-भतीजे के बीच सीधी टक्कर है। अगर यह चुनाव पद्मेश जीतते हैं तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी,  जबकि गिरीश गौतम के लिए यह बड़ी हार होगी। अगर गिरीश गौतम जीतते हैं तो वह अपनी राजनैतिक प्रतिष्ठा बचाने में सफल माने जाएंगें।

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बन्ना और प्रदीप पटेल का संघर्ष 
मऊगंज विधानसभा- नए जिले मऊगंज में कांग्रेस और बीजेपी में सीधी भिडंत मानी जा रही है। कांग्रेस से पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह बन्ना उम्मीदवार हैं, जबकि वर्तमान विधायक प्रदीप पटेल को भाजपा ने प्रत्याशी अपना बनाया है। वहीं स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय के प्रति अपना विरोध भी दर्ज कराया था। हालांकि बाद में पार्टी नेत्त्व ने नाराज कार्यकर्ताओं को मना लिया था। लेकिन पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस ने बाहरी भीतरी का मुद्दा उठाया। जबकि भाजपा नए जिले का श्रेय लेती रही। यह चुनाव सुखेंद्र सिंह बन्ना और प्रदीप पटेल के लिए काफी अहम माना जा रहा है। 

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जीत-हार तय करेगा तिवारी परिवार का वर्चस्व 
त्योंथर विधानसभा- जिले की सबसे चर्चित सीटों में एक त्योंथर विधानसभा में यह चुनाव कांग्रेस भाजपा से शुरू हो कर जातिवाद पर आकर अटक गया। बीजेपी की ओर से यहां सिद्धार्थ तिवारी प्रत्याशी हैं जो कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे स्व. श्रीनिवास तिवारी के पोते हैं। चुनाव से पहले सिद्धार्थ कांग्रेस की टिकट के लिए मेहनत कर रहे थे। लेकिन जब कांग्रेस ने रमाशंकर सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार घोषित किया। तो नाराज होकर 40 वर्षीय सिद्धार्थ बीजेपी मे चले गए, जिसके बाद भाजपा ने सिद्धार्थ को अपना उम्मीदवार तय किया।  त्योंथर विधानसभा में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। वहीं बसपा से भाजपा के बागी देवेंद्र सिंह चुनावी मैदान में हैं। विकास, बाहरी-भीतरी के मुुद्दों पर शुरू हुआ चुनाव मतदान के दिन जातिवाद पर जा रूका। माना जा रहा है कि जातिगत आधार पर दोनों ओर बड़ी संख्या में वोट किया है। अब देखना है कि अन्य जातियों के समीकरण, बसपा के वोट आदि फैक्टरों के बाद जीत का सेहरा किसके सिर बंधता है।
इस चुनाव के परिणाम में दोनों प्रत्याशियों (सिद्धार्थ और रमाशंकर) का भविष्य निर्भर करेगा। जीतने वाला राजनीति में बेंच मार्कतय करेगा। वहीं हारने वाले को शुरू से शुरू करना होगा। वहीं जिले के बड़े राजनैतिक तिवारी परिवार की राजनीतिक दिशा दशा भी चुनाव परिणाम  स्पष्ट करेंगे।

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