Navratri Special: त्रिकूट पर्वत में गिरा था माई का हार, बना शक्तिपीठ, मैहर में नवरात्रि में उमड़ते हैं श्रद्धालु

आदि शंकराचार्य ने की थी पहली विशेष पूजा, कई प्रदेशों से आते हैं श्रद्धालु

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9 अप्रैल 2024 से चैत्र नवरात्रि शुरू होने जा रहा है। जिसके लिए देश भर के देवी मंदिरों में विशेष तैयारियां की गई हैं। माता के भक्त घरों में भी पूजन अर्चन का जतन कर रहे हैं। वैसे तो चैत्र नवरात्रि का यह पर्व पूरे नौ दिनों तक देश भर में अलग-अलग पूजा पद्धतियों व मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। लेकिन मध्य भारत के लोगों के लिए यह पर्व पूरी श्रद्धा के साथ मैहर वाली माता मां शारदा दर पर मनाने की परंपरा है। यहां पूरे नौ दिनों तक लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश प्रदेश के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। 


विंध्य क्षेत्र के मैहर जिला मुख्यालय में स्थिति त्रिकूट पर्वत की चोटी पर माई का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। इस धाम के पौराणिक महत्व की बात करें तो माता सती द्वारा अग्रिदाह करने के बाद भगवान शिव ने माता का पार्थिव शरीर लेकर भयंकर क्रोध में तांडव करने लगे। भगवान के क्रोध को देखकर देवता गण भी कांप उठे। सभी को इस ब्रह्मांड की चिंता सताने लगी। तब भगवान विष्णु ने शंकर जी के क्रोध को शांत करने व ब्रह्मांड की रक्षा के सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। इस दौरान उनके शरीर के अंग व उनके गहने अलग अलग स्थानों में गिरे। जिन स्थानों में यह गिरे वहाँ स्थापित हुए शक्ति पीठ। 


देवी के शक्तिपीठों की संख्या अलग अलग ग्रंथों में अलग अलग बताई गई है। उदाहरण के लिए तंत्र चूड़ामणि में इन शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। जबकि देवी भागवत और देवीगीता में क्रमश: 108 एवं 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। इसी तरह, देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ हैं। सामान्य तौर पर माँ दुर्गा के भक्त, विद्वतजन और धर्मगुरु भी शक्तिपीठों की संख्या 51 ही मानते हैं।

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गिरा था सती का हार 
इन 51 शक्तिपीठों के अलावा मैहर का मंदिर भी एक शक्तिपीठ ही माना जाता है। मैहर का माता शारदा का मंदिर  विंध्य पर्वत श्रेणी के त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित है। माना जाता है कि यहां सती के गले का हार गिरा था। इसीकारण इस स्थान का नाम माई का हार यानी मैहर पड़ा। मैहर मंदिर में जगत माता शारदाम्बिका की उपासना की जाती है। इसे मध्य भारत का श्रृंगेरी मठ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ विराजित माता शारदाम्बिका श्रृंगेरी की पूज्य देवी का ही रूप मानी जाती हैं। साथ ही यहां भी श्रृंगेरी मठ के अनुसार तीन प्रहर पूजा होती है। मैहर में माता शारदा के वर्तमान मंदिर की स्थापना सन् 502 में हुई थी। लोगों का मानना है कि आदि शंकराचार्य ने मैहर में सबसे पहले माता शारदा की विशेष पूजा की थी।

कई प्रदेशों से आते हैं श्रद्धालु
वैसे तो मां शारदा के धाम में साल के हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन नवरात्रि पर्व में यहां श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ जाती है। शारदेय व चैत्र नवरात्रि के अलावा गुप्त नवरात्रि का भी यहां विशेष महत्व है।  इन नौ दिनों के दौरान माता शारदाम्बिका की उपासना महाकाली, ब्राह्मी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, इन्द्राणी, चामुण्डेश्वरी एवं गजलक्ष्मी के रूप में होती है। यह मंदिर न केवल मध्य प्रदेश बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान के श्रद्धालुओं के बीच भी काफी प्रसिद्ध है।

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आल्हा उदल की कहानी प्रसिद्ध 
कहा जाता है कि चंदेल राजा परमाल के दो सेनापति थे आल्हा और उदल। दोनों ने मां शारदा की तपस्या की। दोनों देवी के अनन्य भक्त थे। आल्हा ने करीब 12 वर्ष तक देवी की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हे दर्शन दिया। साथ ही अमरत्व का वरदान भी दिया। मान्यता है कि आज भी देवी की पहली पूजा आल्हा के द्वारा की जाती है। मंदिर से जुड़े पुरोहित व स्थानीय विद्धान बताते हैं कि कई बार मंदिर के गर्भगृह प्रात: खोलने पर जल और ताजे पुष्प मिले। हालांकि यह घटना कई वर्षों में एक बार होती है।