Rewa News: वन विभाग ने दो ट्रकों में लोड 65 टन लकड़ी पकड़ी, अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश

फर्जी टीपी से हो रहा था लकड़ी का परिवहन, पांच आरोपी गिरफ्तार

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रीवा। वन विभाग के कर्मचारियों ने लकड़ी का अवैध परिवहन करने वाले एक अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया है। दो ट्रकों में लादकर ले जाई जा रही लकड़ी की सूचना डीएफओ को मिली थी। इस पर उन्होंने घेराबंदी कराकर जांच कराई तो इसमें फर्जी टीपी मिली। जिसके बाद दोनों ट्रकों की लकड़ी जब्त करते हुए पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। उनसे पूछताछ की जा रही है। यह कार्रवाई वन विभाग के चाकघाट वन परिक्षेत्र के कर्मचारियों द्वारा की गई। डीएफओ ने कहा कि इस कार्रवाई में शामिल वन विभाग की टीम के सदस्यों को 26 जनवरी के दिन सम्मानित किया जाएगा।

शुक्रवार को वनरक्षक ने संदिग्धता के आधार पर लकड़ी का परिवहन करते 2 ट्रकों को रोककर दस्तावेजों की जांच की तो पूरा मामला संदिग्ध मिला। वन अवरोध नाका चाकघाट पर ट्रकों को रोककर अन्य अधिकारियों को भी इसकी जानकारी दी गई। जांच के दौरान ट्रक चालकों द्वारा प्रस्तुत किए गए परिवहन अनुज्ञा पत्र (टीपी) के अवलोकन से संदिग्धता और बढ़ी। तुरंत उत्तर प्रदेश वन विभाग के अधिकारियों से संपर्क पर पुष्टि की गई, जिन्होंने स्पष्ट किया कि अनुज्ञा पत्र पूर्णत: फर्जी हैं। जानकारी मिलने पर साल की लकडिय़ों से भरे दोनों ट्रक वन विभाग द्वारा जब्त किए गए, इनमें 65 टन साल की लकड़ी लदी हुई पाई गई है। इन्हें प्रभागीय वन अधिकारी ओबरा, उत्तर प्रदेश की ओर से टीपी जारी की गई थी। जांच के दौरान संबंधित अधिकारियों ने कहा है कि यह फर्जी है।

फर्जी टीपी बनाने वाला गिरोह यूपी का
पूछताछ में आरोपियों ने बताया है कि उत्तर प्रदेश का साहिल उर्फ आकिब फर्जी टीपी बनाकर उपलब्ध कराता रहा है। यह कहां रहता है इसका पता आरोपियों ने नहीं बताया है। कहा है कि हर शहर में उसके आदमी रहते हैं और टीपी बनवाकर पहुंचाते हैं। इसके पहले ओबरा से ही बीते साल जुलाई में भी ऐसे ही फर्जी टीपी का एक मामला संज्ञान में आया था।

कई राज्यों में फैला है नेटवर्क
मुख्य आरोपी निसार अली उर्फ हाजी निवासी यमुना नगर हरियाणा ने पूछताछ में वन विभाग के अधिकारियों को बताया है कि वह मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के साथ ही उत्तर प्रदेश के कई जिलों, उत्तराखंड के रुढ़की, यमुना नगर हरियाणा, जयपुर सहित कई अन्य स्थानों पर भी लकडिय़ां पहुंचाता है। इस काम में कई राज्यों में उसके गिरोह के सदस्य हैं। वन विभाग के अधिकारी अब इसका भी पता लगा रहे हैं कि इनके इस अवैध कारोबार में अन्य किसका सहयोग प्राप्त होता रहा है।