MP Politics: कर्नाटक के परिणाम से MP बीजेपी में हड़कंप, कांग्रेस का जोश हाई
भारतीय जनता पार्टी का संगठन कर सकता है बड़े स्तर पर रणनीतिक बदलाव

कर्नाटक राज्य में कांग्रेस की बंपर जीत से जहां एक और कांग्रेसी कार्यकर्ता उत्साहित नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी शासित उन सूबों में भाजपा कार्यकर्ताओं वह संगठन में हड़कंप की स्थिति है जहां इसी साल चुनाव होने हैं मध्य प्रदेश भी उन्हीं राज्यों में शामिल है। एग्जिट पोल सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे आने के बाद भी गहरी नींद में सो रहे प्रदेश भाजपा नेताओं के असल में होश तो अब उड़ गए हैं।
करीब 18 साल पहले भाजपा के अंदरूनी घमासान के बीच अचानक प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को तश्तरी में पकी पकाई सरकार मिल गई थी। खुद शिवराज सिंह को भी एक दिन पहले तक इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वे न सिर्फ मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं बल्कि इतने लम्बे कार्यकाल का इतिहास रचने जा रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा सरकार और शिवराज सिंह चौहान से ऊब चुकी जनता ने ठेंगा दिखाकर दोनों को बिदाई दे दी थी लेकिन दल बदल की कुटनीति और जोड़तोड़ के चलते भाजपा ने कांग्रेस सरकार गिराकर जबरिया सत्ता हथिया ली थी। तब से अभी तक ज्योतिरादित्य सिंधिया के अहसान तले सरकार उनके चरणों में बिछी रही। इसके साथ ही पार्टी में वह सब होता चला गया जिसकी कल्पना भाजपा के कार्यकर्ताओ को भी नहीं थी और न ही भाजपा की परम्परा रही थी। पार्टी में आयातित नेताओं का वर्चस्व हो गया और जमीन से जुड़े नेता जमीन पर ही खड़े रहकर पूरे चार साल तमाशा देखते रहे।
दूसरी ओर पार्टी ने अपनी पराजय से कोई सबक नहीं सीखा क्योंकि सत्ता के सुख में एक बार फिर से जिम्मेदारों को सब कुछ हरा ही हरा नजर आने लगा। तानाशाही और साहुकारी ऐसी की किसी भी चीज में एक रुपए की राहत नहीं दी गई। पार्टी में चका चौंध और धन बल हावी होता चला गया जिसके कारण पार्टी की मूल पहचान खो गई। ऊंचे मलाईदार पदों पर बैठे पदाधिकारियों, मंत्री, विधायकों को नीचे दिखाई देना बन्द हो गया। भाजपा ने पूरी तरह कांग्रेस की तर्ज पर शासन करना शुरु कर दिया और हिंदुत्व और संस्कृति की दुहाई देने वाली संघ से जुड़ी पार्टी ने संघ की मूल भावना से हटकर सारी मर्यादा को भी तार तार कर दिया।
हाल ही में जो अंदर की खबरें छनकर आ रही है उससे पता चला है कि वर्तमान आधिकांश भाजपा विधायकों का रिकॉर्ड इतना खराब हो चुका है की अगर फिर से उन्हें टिकट दिया जाता है तो जनता उन्हें सबक सिखाकर रहेगी। इस बीच चुनाव लड़ने के इच्छुक कांग्रेस नेता तो जैसे बिल्ली के भाग्य से सीका टूटने का ही इंतजार कर रहे हैं उन्होंने मौके का लाभ उठा कर पूरे चार साल जनता के बीच रहकर उनके दुख दर्द से सरोकार बनाए रखा और अपना वोट बैंक मजबूत कर लिया।
खास बात यह है कि इस बार कांग्रेस में ज्यादा गुटबाजी और खींचतान नजर नहीं आ रही जितनी भाजपा में मची है। इन्हीं सब कारणों से भाजपा सरकार खतरे में आ गई है। कर्नाटक की पराजय से यहां भी सत्ता सुख जाने की आशंका अधिक बलवती हो गई है।
हालांकि प्रदेश में चुनावी महासंग्राम शुरु होने में अभी कुछ समय शेष है लेकिन कर्नाटक के परिणाम ने समय से पहले ही यहां चुनावी शंखनाद कर दिया है और दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टी में भारी सरगर्मी और उठापटक तेज होना शूरू हो गई हैं।