MP News: एमपी में दस साल के भीतर दो लाख करोड़ खर्च, फिर भी बिना भवन के चल रहे 400 स्कूल
साढ़े 9 हजार से अधिक स्कूलों में बालिका शौचालय बंद, अस्सी हजार स्कूलों में क्लास रूम के लिए मरम्मत की जरूरत
भोपाल। मध्यप्रदेश का स्कूल शिक्षा विभाग गजब है। दस साल में दो लाख करोड़ खर्च करने के बाद भी विभाग के चार सौ स्कूल बिना भवन के चल रहे हैं। साढ़े 9 हजार से अधिक स्कूलों में बालिका शौचालय बंद हैं। करीब अस्सी हजार स्कूलों के क्लास रूम में मेजर रिपेयरिंग की जरूरत है। साढ़े चार हजार से अधिक बालक शौचालय सुविधा विहीन हैं।
यह स्थिति विकसित भारत की थीम पर काम करने वाले स्कूल शिक्षा विभाग के सरकारी स्कूलों की है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत 'स्कूल चलें हम' अभियान करीब-करीब पूरे देश में चलाया गया। मध्यप्रदेश में तो तमाम सरकारी स्कूलों में प्रवेश उत्सव भी मनाया गया। मकसद सिर्फ यह था कि बच्चे स्कूल जाएं और अपना बेहतर भविष्य बना पाएं। मगर कागजों और सरकारी दावों से इतर, जमीनी हकीकत कुछ और है।
मध्यप्रदेश का आलम यह है कि बच्चे कह रहे हैं कि स्कूल तो आ जाएंगे, पर बैठेंगे कहां? स्कूल आ भी गए, तो इसकी क्या गारंटी है कि उसकी इमारत हमारे लिए सुरक्षित है? सवाल और भी हैं। मसलन-हमें पढ़ाएगा कौन? सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूलों की लैबोरेट्ररी में हमें सिखाएगा कौन? एक कमरे में 5 अलग-अलग ब्लैक बोर्ड हों, तो हम पढ़ेंगे कैसे? हम यह बातें यूं ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि प्रदेश में सरकारी स्कूलों की हालत ही ऐसी है।
गजब तो यह है कि सरकार के पास हालात में सुधार के लिए पर्याप्त पैसे भी हैं और सरकार की ओर से राशि जारी भी की जाती है, लेकिन फिर भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक अराजकता है और उसका खामियाजा हमारे प्रदेश का भविष्य यानी बच्चे झेल रहे हैं।
विकसित भारत की थीम पर काम करने वाले स्कूल शिक्षा विभाग के 30 दिसंबर 2024 की स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में कुल स्कूलों की संख्या 92031 है। इसमें 399 स्कूल बिना भवन के चल रहे हैं। 9620 में बालिका शौचालय बंद पड़े हैं, जबकि 3096 स्कूलों में बालिका शौचालय सुविधा विहीन हैं।
प्रदेश के कुल 79586 स्कूलों के क्लास रूम को मेजर रिपेयरिंग की जरूरत है और 63617 स्कूलों में माइनर रिपेयरिंग की जरूरत बताई गई है। कुल 11063 स्कूलों में बच्चों के शौचालय बंद पड़े हैं, जबकि 3544 स्कूल शौचालय सुविधा विहीन हैं। इन हालतों के चलते पिछले साल की अपेक्षा इस बार सरकारी स्कूलों में पांच लाख से अधिक छात्रों का नामांकन कम हुआ है। यानी इन छात्रों का पढ़ाई से मोह भंग गया है।
सूबे के 773 स्कूलों में पीने के लिए पानी नहीं
सूबे के 773 स्कूल पेयजल की सुविधा के लिए मोहताज हैं। राज्य के 850 स्कूलों में पेयजल सुविधा बंद पड़ी है। 14764 स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के दौरान हैंड वॉश की सुविधा नहीं है, जबकि 14643 स्कूल हैंड वॉश की सुविधा विहीन हैं। 39548 स्कूलों की बाउंड्री वाल नहीं है। इससे इन स्कूलों में असामाजिक तत्वों के साथ आवारा पशुओं का आना-जाना लगा रहता है। 5303 स्कूलों में खेल मैदान नहीं हैं।
साढ़े सात सौ स्कूलों को साइंस किट नहीं मिली
प्रदेश के 750 हायर सेकेंडरी स्कूलों में अभी तक साइंस किट नहीं मिली है। कुल 2695 स्कूलों में इंटीग्रेटेड साइंस लैब तक उपलब्ध नहीं है। राज्य के 8762 स्कूलों में टिंकरिंग लैब नहीं है।
67 हजार स्कूलों में टाट-पट्टी पर बैठ रहे बच्चे
स्कूलों में छात्रों को पढ़ाई का माहौल देने के लिए मूलभूत सुविधाएं भी जरूरी होती हैं, लेकिन आज भी प्रदेश के 67450 स्कूलों में फर्नीचर की सुविधा नहीं है। जाहिर है कि इन स्कूलों में बच्चे टाट-पट्टी पर बैठ रहे हैं। प्रदेश के 33724 स्कूलों में भवन काफी पुराने हैं और पूरी बिल्डिंग ब्लाक्स है।
सोलह हजार से अधिक स्कूलों में बिजली नहीं
मध्य प्रदेश के 16742 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें आज तक बिजली की सुविधा नहीं दी गई है। 796 स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है। प्रदेश के 92 हजार स्कूलों में से 61 हजार में प्रधानाध्यापक के लिए कक्ष नहीं हैं। इन्हें सभी कार्य क्लास रूम में बैठकर करने होते हैं।