MP News: प्रदेश के 5 मेडिकल कॉलेजों की मान्यता पर मंडराया खतरा, विंध्य का भी एक कॉलेज शामिल
मेडिकल कॉलेज की भर्ती प्रक्रिया पर प्राफेसर्स ने उठाए सवाल
प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रदेश के श्योपुर, नीमच, मंदसौर, सिंगरौली और सिवनी में पांच नए मेडिकल कॉलेज बोलकर भर्ती प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। भर्ती के पहले चरण में इन पांच मेडिकल कॉलेजों मात्र 30 फीसदी स्टाफ भर पाया है।
नेशनल मेडिकल कमीशन अगर भविष्य में इन मेडिकल कॉलेजों की जांच करता है तो इन कॉलजों की मान्यता पर अभी से खतरा मंडराने लगा है। नेशनल मेडिकल कमीशन मेडिकल कॉलजों को 70 फीसदी स्टाफ होने पर मान्यता प्रदान करता है। मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन ने डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल और स्वास्थ्य चकित्सा आयुक्त तरूण पिथोड़े को पत्र लिखकर सेवा भर्ती अधिनियम में सुधार करने की मांग की है।
सर्विस प्रोटेक्शन भी नहीं
चिकित्सा सेवा भर्ती अधिनियम में डॉक्टरों को बेहतर सुविधा नहीं मिलने के चलते डॉक्टर भर्ती प्रक्रिया से दूरी बनाए रहते है। प्रदेश में डॉक्टरों को सर्विस प्रोटेक्शन और टेक्नीकल सुविधा भी नहीं है। मेडिकल कॉलजों में सीधी भर्ती होने से अनुभवी प्रोफेसरों को आगे के पदों पर नियुक्ति की संभावना कम हो जाती है।
देश के अन्य राज्यों में डॉक्टरों को नॉन प्रैक्टिस अलाउंस सातवें वेतनमान के हिसाब से 25 फीसदी मिलता हैं। लेकिन प्रदेश के डॉक्टरों के पास ऐसी सुविधा नहीं है। प्रदेश में 55 फीसदी ऐसे डॉक्टर्स है जो कहीं भी प्रैक्टिस नहीं करते हैं। प्रदेश के 13 स्वशासी मेडिकल कॉलजों में रिटायरमेंट के बाद डॉक्टरों के पास ग्रेच्युटी की कोई सुविधा नहीं हैं।
प्रदेश के पांच नए मेडिकल कॉलजों में राजपत्र के भर्ती नियमों इस बार नहीं किया गया है। राजपत्र भर्ती नियम में उल्लेख है उम्मीदवारों को शासकीय अनुभव का लाभ देकर उन्हें जाए। लेकिन नियम होने के बावजूद भी 34 डॉक्टरों को नहीं मिला। स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रदेश के श्योपुर, नीमच, मंदसौर, सिंगरौली और सिवनी में पांच नए मेडिकल कॉलेज बोलकर भर्ती प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
बताया जा रहा है शासन में बैठे उच्च अधिकारी भर्ती करते समय अपने ही बनाए नियमों का पालन नहीं करते हैं। मनमर्जी तरीके से नियुक्तियां करते हैं। अधिकारियों द्वारा बनाई गई सेवा शर्तें देश में सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में खराब है। यही कारण है कि प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों और टीसर्च की पर्याप्त कमी बनी हुई हैं।