Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश में 'नई श्वेत क्रांति' का उदय है दुग्ध उत्पादन में अग्रणी बनने का संकल्प
विशेष आलेख: शशिकांत त्रिवेदी
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गौ-प्रेम का व्यावहारिक धरातल पर पूरी मजबूती के साथ उतरता दिखना सूबे के लिए एक 'नई श्वेत क्रांति' के शुभारंभ जैसा है। देश भर में फिलहाल कुल दुग्ध उत्पादन की लगभग 9 प्रतिशत आपूर्ति मध्यप्रदेश द्वारा की जा रही है। डॉ. मोहन सरकार का संकल्प है कि आने वाले पांच वर्षों में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के माध्यम से गौवंश की नस्ल सुधारकर दुग्ध उत्पादन को तीव्र गति से बढ़ाना है और मध्यप्रदेश को देश में दुग्ध उत्पादन के मामले में अग्रणी प्रदेश बनाना है। डॉ. यादव ने दुग्ध उत्पादन की 9 फीसदी सहभागिता को 20 फीसदी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। गत दिवस गोवर्धन पूजन के साथ डॉ. मोहन यादव की इस 'नई श्वेत क्रांति' की शुरुआत भी हो चुकी है।
भारत में श्वेत क्रांति 1970 से 1996 के बीच हुई, जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है। इस क्रांति ने भारत को दूध की कमी वाले देश से विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश में बदल दिया। यह श्वेत क्रांति गांवों में रह रहे लाखों भारतीयों के लिए न सिर्फ रोजगार और आय का सबसे बड़ा स्रोत बनी , बल्कि भारत की कृषि व्यवस्था के लिए भी वरदान साबित हुई। तीन दशकों तक, तीन चरणों में चले 'ऑपरेशन फ्लड' में प्राय: किसी न किसी रूप में हर भारतीय का योगदान था। लेकिन इसका मुख्य श्रेय श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन, त्रिभुवनदास किशिभाई पटेल और हरिचंद मेघा दलाया को जाता है। वर्गीज और हरिचंद की जोड़ी ने बचे हुए दूध से मिल्क पाउडर और बेबी फू ड बनाने की जो तकनीक विकसित की, वह आज पूरे विश्व के लिए बड़ा वरदान है। हम सब के लिए यह जानना भी जरूरी है कि वर्गीज कुरियन और हरिचंद मेघा दलाया दोनों ही मिल्क इंजीनियर थे।
देश में श्वेत क्रांति इस बात की भी मिसाल है कि मिलकर काम करने से कोई भी बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। मक्खन बनाने वाली कम्पनी पॉलसन के एकाधिकार और मनमानी के खिलाफ सरदार वल्लभ भाई पटेल की सलाह पर किसानों द्वारा गुजरात के आणंद में बनाई गई सहकारी संस्था के ब्रांड अमूल के जरिए वर्गीज कुरियन ने दूध उत्पादन के मामले में जिस तरह से भारत को विश्व का अग्रणी दुग्ध उत्पादक देश बना दिया, वह नि:संदेह आज सभी सरकारों के लिए अनुकरणीय है। यह सुखद है कि मध्यप्रदेश जैसे हरित और कृषि प्रधान राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा दुग्ध उत्पादन के मामले में अपने प्रदेश को प्रथम बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों की मानें तो फिलहाल उत्तरप्रदेश, देश में दुग्ध उत्पादन के मामले में 15.7 फीसदी हिस्सेदारी के साथ नम्बर 1 पर है, जबकि राजस्थान 14.44 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ देश में दूसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है। मध्यप्रदेश का स्थान दुग्ध उत्पादन के मामले में फिलहाल तीसरा है और हिस्सेदारी 8.73 फीसदी है।
मध्यप्रदेश के वर्तमान दुग्ध उत्पादन लगभग 9 प्रतिशत को बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का संकल्प बगैर आमजन की सहभागिता के पूरा नहीं हो सकता। किंतु इस बात में भी कोई दोमत नहीं है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति में सूबे के हर नागरिक के तमाम हित निहित हैं और हर नागरिक की तमाम समस्याओं का निराकरण भी इस लक्ष्यपूर्ति में छिपा हुआ है। दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ ही नकली और मिलावटी दूध व दुग्ध उत्पादों से स्वत: ही छुटकारा मिल जाएगा। कुपोषण से मुक्ति में मदद मिलेगी, हेल्थ इंडेक्स सुधरेगा। गांव-गांव, लोगों को उनके घर पर ही उन्हें रोजगार मिलेगा, खासकर महिलाओं को। बढ़ते दुग्ध उत्पादन के साथ ही नशाखोरी घटने लगती है। इस तरह युवा नशे से मुंह मोड़ेंगे, अपराध कम होंगे। कृषि उत्पादन और ज्यादा तेजी से बढ़ेगा, कृ षि क्षेत्र में भी रोजगार बढ़ेंगे। गोबर की खाद, उपलों और गोबर उत्पादों का बड़ा कारोबार मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था में जुड़ेगा। गांव-गांव, कस्बों और शहरों मेें गौशालाओं की स्थापना, पशुपालन-पशुधन बढ़ने से अन्य तमाम क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर बढ़ जाएंगे।
तीसरे स्थान से पहले स्थान पर पहुंचना और अपनी सहभागिता को दोगुने से ज्यादा करना, यह अपने आप में बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद बीते कुछ दिनों से जिस तरह डॉ. मोहन यादव सरकार ने धरातल पर काम करना शुरू किया है, उससे उम्मीदों को बड़ा बल मिलता दिख रहा है। डॉ. यादव के साथ ही मध्यप्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने भी इस दिशा में तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। रीवा जिले के बसामन मामा मंदिर क्षेत्र में एक बड़े गौ-अभ्यारण्य के साथ ही पूरे विंध्य में बन रही कई गौशालाएं उनकी क्रियाशीलता के परिणाम हैं। वहीं मुख्यमंत्री ने गौवंश के जरिए दुग्ध उत्पादन के काम को आजीविका, आय और रोजगार के बड़े अवसर में परिवर्तित करते हुए 10 से ज्यादा गाय पालन करने वालों को अनुदान देने की भी घोषणा की है। गौ-वंश पालकों को अब क्रे डिट कार्ड भी दिए जाएंगे। गौ-वंश के बेहतर आहार के लिए दी जाने वाली प्रति गौ-वंश की राशि भी मुख्यमंत्री ने दोगुनी कर दी है। दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के बीच एमओयू होने जा रहा है। कुल मिलाकर, मध्यप्रदेश में 'नई श्वेत क्रांति' का उदय हो चुका है।
- लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। सम्पर्क- 9993790089