रीवा, मऊगंज, गुढ़, मनगवां में सीधी भिड़ंत; देवतालाब, त्योंथर, सेमरिया, सिरमौर में त्रिकोणीय मुकाबला
तेजी से बदला रीवा- मऊगंज का राजनीतिक माहौल, यहां पाइए हर सीट का हाल-
बसपा के वोटों का आंकलन मुश्किल; रीवा, गुढ़, देवतालाब में आम आदमी पार्टी दर्ज करा सकती है अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 का प्रचार और हो-हल्ला शांत होने के साथ अब सभी आगामी १७ नवंबर को होने जा रहे मतदान के लिए जुट गए हैं। प्रचार के आखिरी दिन १५ नवंबर को सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत रोड शो और जलसा-जुलूस तथा शोर गुल वाले प्रचार में झोंक दी। रीवा शहर में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के प्रत्याशियों ने तामझाम के साथ रोड शों किया और आम जनमानस से समर्थन मांगा।
गौरतलब है कि रीवा मऊगंज जिले की आठ विधानसभा सीटों पर पिछले 10 दिनों में हवा का रूख तेजी से बदला है। पहले के समीकरण परिवर्तित हुए हैं। खास बात यह है कि दोनों जिले की ज्यादातर सीटों में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। कांग्रेस- बीजेपी की लड़ाई के बीच बसपा तेजी से उभर कर सामने आई है। मसलन, सिरमौर, सेमरिया, देवतालाब व त्योंथर में बसपा मजबूती के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है।
आपको बता दें कि पिछले चुनाव यानी साल 2018 के चुनाव में भाजपा ने रीवा जिले की सभी 8 सीटें जीती थीं। कुछ दिनों पूर्व रीवा से मऊगंज अलग बन जाने से अब ६ सीटें रीवा जिले में जबकि 2 सीटें मऊगंज जिले में हो चुकी हैं। साल 2018 की अपेक्षा इस बार मामला बदला हुआ लग रहा है। रीवा, मऊगंज, गुढ़, मनगवां में सीधी भिड़ंत दिख रही है। वहीं देवतालाब, त्योंथर, सेमरिया, सिरमौर में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं।
रीवा में राजेंद्र बनाम राजेंद्र
रीवा- शहरी सीट में भाजपा के राजेंद्र शुक्ला का मुकाबला कांगे्रस के इंजी. राजेंद्र शर्मा से माना जा रहा है। हालांकि भाजपा सरकार में शहर के विकास कार्यों के बदौलत राजेंद्र शुक्ला मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। जबकि महापौर चुनाव जीतने के बाद से उत्साहित कांग्रेस पूरी जोर आजमाइश में लगी हुई है। राजेंद्र शर्मा जहां राजेंद्र शुक्ल के विकास को थोथा और अव्यवस्थित करार दे रहे हैं वहीं चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में राजेंद्र शुक्ल ने राजेंद्र शर्मा की बखिया उधेड़नी शुरू कर दी है। इस सबके बावजूद आम शहरी मतदाता अभी चुप्पी मारे बैठा है। मुखर मतदाता दोनों दलों को अपनी-अपनी निष्ठा के मुताबिक आगे बता रहा है। अब देखना है कि नतीजे क्या बताते हैं? रीवा विधानसभा सीट को लेकर कुछ खास जानना चाहते हैं तो इस वीडियो लिंक को क्लिक करें-
सिरमौर में दिव्यराज और रामगरीब दोनों की लड़ाई वीडी से
सिरमौर - भाजपा के कब्जे वाली इस सीट में इस बार त्रिकोणीय संघर्ष है। बीजेपी के दिव्यराज सिंह के सामने कांग्रेस के रामगरीब वनवासी के ज्यादा बहुजन समाज पार्टी के वीडी पाण्डेय बड़ी चुनौती बन रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो सिरमौर से फिलहाल बसपा मजबूत स्थिति में है। वहीं जातिगत आधार पर ध्रवीकरण ज्यादा हुआ तो रामगरीब वनवासी भी कमजोर नहीं रहेंगे। वहीं भाजपा अपनी योजनाओं व उपलब्धियों का प्रचार कर रही है। एंटी-इनकंबेंसी के बावजूद कांग्रेस फायदा उठाने की स्थिति में नहीं है।
अभय, केपी और पंकज में कांटे का मुकाबला
सेमरिया - जिले की हाट सीट बनी सेमरिया में भी कांग्रेस -बीजेपी के अलावा बीएसपी मजबूत स्थिति में है। भाजपा ने की ओर से उम्मीदवार केपी त्रिपाठी जहां पिछले पांच सालों के विकास के आधार पर सेमरिया को सुंदर, समृद्ध बनाने के लिए वोट की अपील कर रहे है, जबकि कांग्रेस के अभय मिश्र भयमुक्त सेमरिया की बात करते दिख रहे हैं। वहीं बसपा से पंकज सिंह को लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहने का फायदा मिल रहा है। सेमरिया में कांटे की टक्कर रहने के आसार हैं। यहां देखिए सेमरिया के लोगों की क्या है राय-
मऊगंज में बन्ना जनता के बूते, प्रदीप को पार्टी का सहारा
मऊगंज- मऊगंज सीट में जिला बनाने के साथ बाहरी का मुद्दा भी चल रहा है। मऊगंज में भाजपा ने नए जिले को बड़ा मुद्दा बनाया है। इसके जरिए एंटी-इनकंबेंसी की हवा को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि क्षेत्र में लगातार जनता के संपर्क में रहने के कारण कांग्रेस प्रत्याशी सुखेंद्र सिंह बन्ना बढ़त के साथ दिखते हैं। जबकि भाजपा विधायक से नाराज लोग कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। वहीं बीजेपी सरकार की योजनाओं, लाड़ली बहना योजना सहित कई कल्याणकारी योजनाओं के चलते मैदान में बनी हुई है।
देवतालाब में चाचा-भतीजा की लड़ाई में बसपा भी भागीदार
देवतालाब- देवतालाब विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा अध्यक्ष व भाजपा के प्रत्याशी गिरीश गौतम को भतीजे पद्मेश गौतम (कांग्रेस) से चुनौती मिली है। बता दें कि पिछले साल हुुए जिला पंचायत चुनाव में गिरीश के बेटे को पटखनी देकर पद्मेश ने अपनी ताकत दिखाई है। हालांकि इस चुनौती को गिरीश गौतम लाड़ली बहना स्कीम के जरिए पाटने की कोशिश कर रहे हैं। देवतालाब में बसपा और सपा भी पूरी ताकत के लड़ती दिख रही है। ऐसे में चाचा-भतीजे की लड़ाई में बसपा भी भागीदार बनने की स्थिति में दिख रही है।
त्योंथर में उलझा गणित, त्रिकोणीय संघर्ष
त्योंथर- त्योंथर में ब्राह्मणों के एकतरफा ध्रुवीकरण और बसपा के उभार ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है। दरअसर कांग्रेस से बीजेपी में आए सिद्धार्थ तिवारी को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद ब्राह्मणों का एकतरफा ध्रुवीकरण हुआ है। जिसके चलते अन्य ओबीसी जातियां भी एक जुट होनी शुरू हुई हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी देवेंद्र सिंह के मजबूती से चुनाव लड़ने से यह समीकरण और भी ज्यादा उलझा नजर आ रहा है। हालांकि जातिगत समीकरणों को आधार बनाते हुए राजनीतिक दलों के समर्थक अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित बता रहे हैं। लेकिन यह तो तीन दिसंबर को ही समाने आएगा
मनगवां में नरेंद्र और बबिता में आर-पार की लड़ाई
मनगवां- जिले की एक मात्र सुरक्षित सीट मनगवां में एंटी एनकंबेंसी का प्रभाव कम करने के लिए भाजपा ने विधायक का टिकट काटते हुए नए चेहरे को मैदान में उतारा है। यहां भाजपा के नरेंद्र प्रजापति का सीधा मुकाबला कांग्रेस की बबिता साकेत से माना जा रहा है। वहीं सपा बसपा भी समीकरण बदल सकते हंै। मनगवां विधानसभा सीट में बबिता अपने अनुभव का पूरा इस्तेमाल कर रही हैं वही नरेंद्र के साथ भाजपा का कोर संगठन मौजूद है। ऐसे में यहां मामला आर-पार का नजर आ रहा है।
गुढ़ में वोकल कपिध्वज के साथ, साइलेंट नागेंद्र सिंह की तरफ
गुढ़ - बीजेपी के वरिष्ठ विधायक नागेंद्र सिंह का मुकाबला कांग्रेस के कपिध्वज सिंह से है। क्षेत्र में भाजपा के प्रति सत्ता विरोधी लहर भी पार्टी के लिए चुनौती बन रही है। वहीं लगातार क्षेत्र मे रहने का फायदा कांग्रेस प्रत्याशी कपिध्वज सिंह को मिल रहा है। हालांकि बीजेपी के नागेंद्र सिंह पूरी शिद्दत से चुनाव लड़ कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। राजनीतिक जानकारों की माने तो गुढ़़ में वोकल मतदाता कपिध्वज के साथ है जिससे क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी की चर्चा ज्यादा है लेकिन नागेंद्र सिंह के साथ साइलेंट वोट बैंक खड़ा जो चर्चा में शामिल नहीं होता लेकिन वोट की संख्या बढ़ाने में यकीन करता है लोगों की क्या है राय देखिए देखिए -