'पकड़ौआ विवाह' पर पटना हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, जबरदस्ती विवाह मान्य नहीं

कोर्ट ने कहा- दुल्हन-दूल्हे की इच्छा न हो तो वह विवाह नहीं माना जाएगा 

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बिहार राज्य में प्रचलित पकड़ौआ विवाह या बंदूक के बल पर हुई शादी को लेकर पटना हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने पकड़ौआ विवाह को अमान्य करार देेते हुए कहा कि यह हिन्दू मैरिज एक्ट तहत मान्य नहीं है। इस मामले में बड़ी टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक दूल्हा दुल्हन अपनी मर्जी से सात फेरे नहीं लेते तब तक उसे विवाह नहीं कहा जा सकता है।
दरअसल पटना हाईकोर्ट ने यह बातें भारतीय सेना के एक कांस्टेबल की ओर से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कहीं। और उनकी फरियादी कांस्टेबल की शादी को रद्द कर दिया। बता दें कि 10 साल पहले बिहार कांस्टेबल का अपहरण कर एक लकड़ी से बंदूक के बल पर जबरदस्ती शादी कराई गई थी। याचिकाकर्ता और नवादा जिले के रविकांत को 30 जून 2013 को दुल्हन के परिवार ने उस समय अगवा कर लिया था जब वह लखीसराय के एक मंदिर में प्रार्थना के लिए पहुंचे थे। यह घटना बिहार के पकड़ौआ बिआह  का एक उदाहरण था। 

बता दें कि बिहार के कुछ इलाकों में विवाह योग्य उम्र की लड़कियों के परिवार के लोगों द्वारा भारी दहेज से बचने के लिए कपटपूर्ण तरीकों का सहारा लिया जाता है, जिसके तहत अच्छे लड़कों का खासकर सरकारी नौकरी कर रहे युवकों को जबरदस्ती पकड़कर उनकी शादी करवाई जाती है। जो कि एक सामाजिक बुराई है। और इस विषय पर केंद्रित कई फिल्में भी बन चुकीं हैें। 

वहीं इस मामले में याचिकाकर्ता विवाह की सभी रीतियों के संपन्न होने से पहले ही दुल्हन के घर से भाग गया। और ड्यूटी पर फिर से लौटने के लिए जम्मू कश्मीर चला गया। छुट्टी से लौटने पर शादी को रद्द करने की मांग करते हुए लखीसराय की परिवार

अदालत में एक याचिका दायर की 
परिवार अदालत ने 27 जनवरी 2020 को उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने पटना उच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया। न्यायमूर्ति पीबी बजंथरी और न्यायमूर्ति अरूण कुमार झा की खंड पीठ ने निचली अदालत के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि परिवार अदालत ने त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया कि याचिकाकर्ता का मामला अविश्वसनीय हो गया, क्यों कि विवाह को रद्द करने के लिए तुरंत मुकदमा दायर नहीं किया था।