MP News: एमपी के 3185 स्कूलों में बेटियों के लिए टॉयलेट नहीं, 7755 स्कूलों में बालिका टॉयलेट बंद 

लाड़ली बहना योजना में खर्च हो रहे अरबों रुपए; बिना भवन के चल रहे 251 स्कूल, 75 हजार स्कूलों में बिल्डिंग मरम्मत जरूरी

 

भोपाल। पहले मध्य प्रदेश में भाजपा और अब बिहार में उसके गठबंधन एनडीए की सरकार बनाने वाली लाड़ली बहनों व भांजियों के लिए प्रदेश के सरकारी स्कूलों में टायलेट तक नहीं है। प्रदेश सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए सरकारी खजाना भी खोल रखा है। विभाग ने दस साल में दो लाख करोड़ से ज्यादा भी खर्च कर दिए, बावजूद इसके 20 नवंबर 2025 की स्थिति में 3185 स्कूलों में बेटियों के लिए टॉयलेट ही नहीं हैं, जबकि 7755 स्कूलों में बालिका टॉयलेट बंद पड़े हुए हैं। 


साउथ कोरिया व सिंगापुर की सैर करने वाले स्कूल शिक्षा विभाग के आला अफसर स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं ही मुहैया नहीं करा पाए हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने लाड़ली बहनों व भांजियों के लिए तमाम योजनाएं बनाई हैं। इनके लिए सरकारी खजाने से कोई कमी नहीं रखी गई।

भांजियों की स्कूली पढ़ाई के लिए सरकार तमाम तरह के प्रयास भी कर रही है। मकसद सिर्फ यह कि बच्चे स्कूल आएं और अपना बेहतर भविष्य बनाएं। मगर कागजों और सरकारी दावों से इतर देखें तो जमीनी हकीकत कुछ और है।


मध्य प्रदेश में आलम यह है कि सभी स्कूलों में बेटियों के टॉयलेट तक नहीं हैं। आज भी बच्चे टाट-पट्टी पर बैठ रहे हैं। सिंगल-सिंगल टीचर के भरोसे कई स्कूल हैं, जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने स्कूल शिक्षा विभाग को दस सालों में खर्च करने के लिए दो लाख करोड़ से ज्यादा दिए हैं। हर साल बजट में बढ़ोत्तरी की, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही का खामियाजा प्रदेश के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।


विकसित भारत की थीम पर काम करने वाले स्कूल शिक्षा विभाग के 20 नवंबर 2025 की स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में पहली से आठवीं तक कुल स्कूलों की संख्या 82023 है। इसमें 251 स्कूल बिना भवन के चल रहे हैं। 


3185 में बालिका शौचालय ही बंद पड़े हैं, जबकि 6995 स्कूलों में बालिका शौचालय सुविधा विहीन हैं। 74834 स्कूलों के क्लास रूम को मेजर रिपेयर की जरूरत है। 7755 स्कूलों में बालकों के शौचालय बंद पड़े हैं, जबकि 3324 स्कूलों में बालक शौचालय सुविधा विहीन हैं। इन हालतों के चलते पिछले साल की अपेक्षा इस बार सरकारी स्कूलों में नामांकन भी कम हुआ है।


पूरा नहीं हुआ नामांकन का टारगेट
नामांकन का टारगेट 1 करोड़ 50 लाख 32 हजार 810 विद्यार्थियों का है। 18 नवंबर 2025 के आंकड़े बताते हैं कि टारगेट की तुलना में 8 लाख 99 हजार 36 विद्यार्थियों का नामांकन कम हुआ है। यह पिछले साल की अपेक्षा 96.2 फीसदी है, जबकि स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूल चले हम अभियान के तहत 20 मार्च से प्रवेश प्रक्रिया शुरू कर दी थी।


आठ महीने में भी विद्यार्थियों का पूरा नामांकन नहीं हो पाया है। वर्ष 2024-25 में भी विद्यार्थियों का कम नामांकन हुआ था। वर्ष 2025-26 में भी पिछले साल की अपेक्षा कम नामांकन हुआ है। 


सरकारी स्कूलों के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2024-25 में 79 लाख 75 हजार 862 का नामांकन हुआ था। वर्ष 2025-26 में 18 नवंबर की स्थिति तक 75 लाख 50 हजार 179 का नामांकन हुआ है, यानी पिछले साल की अपेक्षा 4 लाख 16 हजार 319 विद्यार्थी कम है।


62 हजार विद्यालयों में टाट-पट्टी पर बैठ रहे बच्चे
साउथ कोरिया व सिंगापुर की यात्रा कर नीतियां बनाने वाले स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर पढ़ने वाले बच्चों को फर्नीचर तक उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। स्कूलों में विद्यार्थियों को महौल देने के लिए मूलभूत सुविधाएं भी जरूरी होती हैं, लेकिन आज भी प्रदेश के 62599 स्कूलों में फर्नीचर की सुविधा नहीं है। स्वभाविक है कि इन स्कूलों में बच्चे टाटपट्टी पर ही बैठ रहे हैं।


13 हजार से अधिक स्कूलों में बिजली नहीं
मध्यप्रदेश के 13634 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें आज तक बिजली की सुविधा नहीं दी गई है। 989 स्कूलों में लायब्रेरी नहीं है। 23151 स्कूलों में रीडिंग कॉर्नर की सुविधा नहीं हैं। 9339 स्कूलों में खेल मैदान ही नहीं हैं। 36821 स्कूलों की बाउंड्रीवाल नहीं है। इससे इन स्कूलों में असामाजिक तत्वों के साथ आवारा पशुओं का आना-जाना लगा रहता है। प्रदेश के 569 स्कूलों पेयजल की सुविधा से विहीन हैं।