Rewa Gang Rape: रीवा गैंगरेप मामले में बोले मनोचिकित्सक- घटना के पीछे आरोपियों में ASPD, यौन कुंठा, नशे की लत और अश्लील सामग्री का प्रभाव
सामुदायिक स्तर पर काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता ही बना सकते हैं एक सुरक्षित और स्वस्थ समाज

भोपाल। मध्य प्रदेश के रीवा स्थित भैरव बाबा मंदिर क्षेत्र में हुई गैंगरेप की शर्मनाक घटना में जहां पुलिस अब तक 8 लोगों को पकड़ चुकी है वहीँ इस मामले में आरोपियों के मनोवैज्ञानिक पक्ष को समझने के लिए गुड मॉर्निंग इंग्लिश ने मध्य प्रदेश के मशहूर मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी से बात की।
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के मुताबिक, सामूहिक बलात्कार की यह घटना न केवल हमारे समाज की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक मूल्यों के पतन की गंभीरता को भी उजागर करती है। इस तरह की घटनाओं में एंटीसोशल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (ASPD), यौन कुंठा, नशे की लत और अश्लील सामग्री का प्रभाव अक्सर जुड़ा हुआ पाया जाता है।
कंसलटेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी ने गुड मॉर्निंग इंग्लिश से बातचीत में बताया कि ASPD से पीड़ित व्यक्तियों में सामान्य मानवीय संवेदनाओं की कमी, सहानुभूति की अनदेखी और सामाजिक नियमों की अवहेलना की प्रवृत्ति देखी जाती है। जब यह प्रवृत्ति यौन कुंठा और अश्लील सामग्री के अनियंत्रित देखने की आदत के साथ जुड़ जाती है, तो ऐसे लोग असल ज़िंदगी में भी अपनी विकृत इच्छाओं को पूरा करने के प्रयास में कोई झिझक महसूस नहीं करते।
अश्लील सामग्री एक भ्रमित करने वाली दुनिया का निर्माण करती है, जहाँ इंसानी भावनाएँ और सीमाएँ गौण हो जाती हैं, और यह गहरी मानसिक विकृति का कारण बन सकती है।डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि इसके अलावा, नशे की लत इस मानसिकता को और अधिक हिंसक बना सकती है।
नशे की हालत में व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है, और वे सही और गलत का अंतर महसूस किए बिना जघन्य अपराध करने पर उतारू हो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने भीतर की कुंठा और आक्रोश को हिंसा और बलात्कार के रूप में बाहर निकाल सकते हैं, जो समाज के लिए अत्यंत घातक है।
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के मुताबिक, समाज में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए, हमें मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने, नशा मुक्ति अभियानों को मजबूत करने और युवाओं के लिए सकारात्मक मार्गदर्शन की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। सामुदायिक स्तर पर काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता से ही हम एक सुरक्षित और स्वस्थ समाज की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।