Supreme Court : शहरों के नाम परिवर्तन को लेकर दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की शख्त टिप्पणी, कहा आप देश को उबलता हुआ देखना चाहते हैं

अदालत ने कहा कि, हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत मामले को देख रहा है
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विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों, सड़कों, इमारतों और संस्थान के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने की मांग की बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका आज सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर बड़े सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि, आप इस याचिका से क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में और कोई मुद्दे नहीं हैं? इसमें कोई शक नहीं है कि भारत पर कई बार हमला किया गया, राज किया गया, यह सब इतिहास का हिस्सा है. आप सलेक्टिव तरीके से इतिहास बदलने को नहीं कह सकते. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता. यह धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिकता और राज्य की कार्रवाई में निष्पक्षता से जुड़ा है. संस्थापक भारत को एक गणतंत्र मानते थे. देश को आगे बढ़ना चाहिए और यह अपरिहार्य है. अतीत की घटनाएं वर्तमान और भविष्य को परेशान नहीं कर सकतीं. वर्तमान पीढ़ी अतीत की कैदी नहीं बन सकती. 

जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि, भारत आज एक धर्मनिरपेक्ष देश है. आपकी उंगलियां  एक विशेष समुदाय पर उठाई जा रही हैं, जिसे बर्बर कहा जा रहा है. क्या आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हैं. हम धर्मनिरपेक्ष हैं और संविधान की रक्षा करने वाले हैं. आप अतीत के बारे में चिंतित हैं और वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ डालने के लिए इसे खोद रहे हैं. इस तरीके से और अधिक वैमनस्य पैदा होगा. भारत में लोकतंत्र कायम है.       


जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है, जिसके कारण भारत ने सभी को आत्मसात कर लिया है. उसी के कारण हम साथ रह पाते हैं. अंग्रेजों की  बांटों और राज करो की नीति ने हमारे समाज में फूट डाल दी.  

अदालत ने कहा कि, हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत मामले को देख रहा है कि न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने का काम सौंपा गया है. प्रस्तावना के संदर्भ में भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. इसे नौ जजों ने बरकरार रखा है.  

याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने उदाहरण देते हुए कहा कि इतिहास को बदल दिया गया. जिन लोगों ने आक्रमण किया, लूटा और महिलाओं से बलात्कार किया उनके नाम से सड़कें व शहरों के नाम रखे गए हैं. यह गरिमा से जीने और संस्कृति के मौलिक अधिकार के तहत आता है.